तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

देश का बिकना भी यारो फ़लसफ़ा  हो जाएगा ।

मीडिया  जिसने  ख़रीदी  वो  ख़ुदा हो जाएगा ।।


आपदा में  लूट  का अवसर  मुबारक़  हो  उसे।

नौजवां  के  पेट  पर इक  हादसा  हो जाएगा ।।


बोलियां  लगने  लगीं  हैं  हर  दरो  दीवार की ।

कैसे कह दूं मैं तुम्हारा  घर  किला हो जाएगा ।।


आज के हालात पर खामोशियाँ वाज़िब  नहीं ।

रहजनों  के  पास  बेहतर  हौसला हो जाएगा ।।


जब ज़रूरत ही नहीं है आपकी  उनको  यहां ।

बेचिए जाकर पकौड़े कुछ  नफ़ा  हो  जाएगा ।।


देख  ली हमने  तरक्की  भुखमरी   के  दौर में ।

अब  हमारी  मौत का भी  फैसला हो  जाएगा ।।


छिन गयी मुस्कान क्यों है खौफ़ में वो  आदमी ।

तेरे  आने  से जो  सोचा  था  भला हो जाएगा ।।


ऐ सितमग़र तुझको भी जाना पड़ेगा एक दिन ।

ये चमन आज़ाद तुझसे  शर्तिया  हो  जाएगा ।।

        -- नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें