तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

तू शमअ सरे बज़्म जलाने के लिए आ

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कुछ  वक्त  मेरे  साथ  बिताने  के  लिए  आ।

तू शमअ  सरे  बज़्म  जलाने  के लिए आ ।।


दिल पर किसी के राज चलाने के लिए आ ।

ऐ  दोस्त  नई   मंजिलें  पाने  के  लिए  आ।।


यूँ छुप छुपा के देख रहा है  तुझे  ये  कौन ।

शर्मो  हया  का  पर्दा  हटाने  के  लिए आ।।


अफ़सोस  है कि आज  परिंदे हैं गिरफ़्तार ।

सय्याद  पे  तू  तीर  चलाने के  लिए  आ ।।


माना  कि  तेरे  साथ  जमाने की दुआ  है ।

दामन से मेरे दाग़  मिटाने  के  लिए  आ ।।


टूटे न मुहब्बत का भरम तुझ से किसी का ।

इक बार  ज़माने को दिखाने  के लिए आ ।।


रूठा है कोई मुद्दतों के बाद भी अब  तक ।

ऐ यार तू उल्फ़त को मनाने  के लिए आ ।।


यूँ उम्र गुज़र  जाए न  रुसवाइयों के  साथ ।

महबूब के दिल में तू  समाने  के लिए आ ।।


बाकी  हैं  मेरे  हक़  के अभी और उजाले । 

ऐ  चाँद  यहाँ  फ़र्ज़  निभाने के लिए आ ।।


            -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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