तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या

 2122 2122 2122

अपनी  रानाई  पे  तू  मग़रूर  है  क्या ।

बेवफ़ाई  के  लिए  मज़बूर  है  क्या ।।


कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।

तू  बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।


दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।

वो ज़रा  सी उम्र में मशहूर  है  क्या ।।


तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।

शह्र   का   तेरे  नया  दस्तूर  है  क्या ।।


ज़ुल्मते शब हो गयी रोशन यहां भी ।

चाँद का उतरा जमीं पर नूर है क्या ।।


हो  रहा  है  हर  तरफ  हंगामा  यारो ।

आ  गई महफ़िल में  कोई हूर है क्या ।।


जख़्म जो उनसे मिला था चंद दिन में ।

बन गया वह घाव भी नासूर है क्या ।।


आपके  लब पर  तबस्सुम हिज़्र में क्यों ।

दर्द  साहब  आपका  काफ़ूर है क्या ।


वह छुपा लेता है चेहरा बारहा क्यों ।

  उसकी सूरत चश्म ए बद्दूर  है क्या ।।


मेरा ख़त पढ़के बहुत ख़ामोश है वो ।

फैसला   मेरा   उसे  मंजूर  है  क्या ।।


        मौलिक अप्रकाशित 

      डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें