तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

महफ़िल में ये नकाब हटाने का शुक्रिया

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महफ़िल में ये नकाब हटाने का शुक्रिया ।

तीरे नज़र को दिल पे चलाने का शुक्रिया ।।1


इज़हारे इश्क हो गया शर्मो हया के बीच ।

उनको हमारी बज़्म में आने का शुक्रिया ।।2


माना कि दिल से ख़्वार नही वो मिटा सके ।

पर मुस्कुरा के हाथ मिलाने का शुक्रिया ।।3


हर बार करके वादा निभा तक सका न तू ।

ताज़ा तरीन  तेरे  बहाने का शुक्रिया ।।4


तुमने तो कह दिया है मुझे बेवफा सनम ।

दामन पे पहला दाग़ लगाने का शुक्रिया ।5


हँसता हुआ मिला तू ज़माने से हिज़्र में ।

आशिक तुझे ये दर्द छुपाने का शुक्रिया ।।6


मुद्दत से इंतज़ार था अब रूबरू हुज़ूर ।

पलकें झुका के दिल में समाने  का शुक्रिया ।।7


हुस्नो अदा की तेरी नुमाइश क़ज़ा बनी ।

यूँ ज़िन्दगी में आग लगाने का शुक्रिया ।।8


आँखों से मैक़दे में जो छलकी शराब है ।

साकी तुझे ये जाम पिलाने का शुक्रिया ।। 9


मुझको अकेला छोड़ के जाना ही था तुम्हें ।

कुछ दूर मेरा साथ निभाने का शुक्रिया ।।10


      --नवीन मणि त्रिपाठी

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