तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी

 2122 2122 212


जाने  कैसी  तिश्नगी   है   ज़िंदगी ।

ख्वाहिशों  की  बेबसी  है जिंदगी ।।1


हर  तरफ़  मजबूरियों  का दौर है ।

ज़ह्र  कितना पी  रही  है जिंदगी ।।2


फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।

भूख  से  दम तोड़ती  है  जिंदगी ।।3


दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।

 बेवफ़ा  सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।4


इस वबा के जश्न  में  तू  देख  तो ।

क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।5


है  तबाही  का  नया  मंज़र  यहां ।

रोटियों  को  ढूँढती  है  ज़िंदगी।।6


इंतकामी   हौसलों   के  साथ   में ।

मुन्तज़िर होकर खड़ी है ज़िंदगी ।।7


वो  सुख़नवर  दर्द  से  महरूम  हैं ।

कह रहे जो इक ख़ुशी है ज़िन्दगी ।।8


बारहा पढ़ते रहे  हम  उम्र  भर ।

वक्त की इक शाइरी है ज़िंदगी ।।9


ये  न  पूछें  आप  मुझसे  हिज़्र में ।

किस  तरह मेरी कटी है ज़िन्दगी ।।10


मौत के  सागर से होना  वस्ल   है ।

देखिये  बहती  नदी  है  ज़िंदगी ।।11


   -   डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी: