तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

मुझे मयकशी से गुरेज़ है , मेरी ज़िंदगी में न ख़्वार कर

 बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


मुझे मयकशी से गुरेज़ है , मेरी ज़िंदगी में न ख़्वार कर ।

मेरी तिश्नlगी तू बढा न अब मेरे साथ शाम गुज़ार कर ।।


मेरे हाले दिल को तू पूछ मत मेरे ज़ख्म को न कुरेद अब ।।

तुझे क्या मिलेगा ऐ बेवफा मेरे दर्द को यूँ उभार कर ।।2


ये जमाल तो है शबाब पर कोई चाँद उतरा जमीं पे है ।

वो तो बिजलियाँ ही गिरा गया सरे बज़्म जुल्फें सँवार कर ।।3


तेरे हुस्न पे जाँ निसार है , तेरी हर अदा का ग़ुलाम हूँ ।

शबे वस्ल है ज़रा पास आ , यूँ झुकी नज़र से न वार कर ।।4


तू नकाब अपना हटाये रख ,मेरी चाहतों का सवाल है ।

मेरी ख्वाहिशें  हैं जवां जवां ,तुझे बारहा यूँ निहार कर ।।5


है लुटा लुटा सा चमन यहां ,ये शज़र खिजां का शिकार है ।

ऐ ख़ुदा ए हुस्न ठहर ज़रा मेरे बाग़ में तू बहार कर ।।6


यहां पायलों की खनक पे है मेरे दुश्मनों की तो चौकसी ।

तू सँभल सँभल के करीब आ कहीं घुघरुओं को उतार कर ।।7


       --नवीन मणि त्रिपाठी

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