तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

आ गयी है सर पे आफ़त सोचिये

लुट   गयी  कैसे   रियासत   सोचिये ।
हर  तरफ़  होती  फ़ज़ीहत   सोचिये ।।

कुछ यकीं कर चुन लिया था आपको ।
क्यों  हुई   इतनी  अदावत   सोचिये ।।

नोट  बंदी   पर   बहुत   हल्ला  रहा ।
अब कमीशन में  तिज़ारत  सोचिये ।।

उम्र  भर   पढ़कर   पकौड़ा  बेचना ।
दे   गए   कैसी   नसीहत   सोचिये ।।

गैर मज़हब को मिटा  दें  मुल्क  से ।
आपकी  बढ़ती  हिमाक़त  सोचिये ।

दाम  पर बिकने  लगी   है  मीडिया ।
आ गयी है सच पे आफत सोचिये ।।

आज  गंगा फिर  यहां  रोती  मिली ।
आप भी अपनी लियाक़त सोचिये ।।

जातिवादी   हो  गयी है सोच  जब ।
वोट की गिरती  सियासत सोचिये ।।

खा रहे दर दर की  ठोकर नौजवां ।
बन गयी दुश्मन हुकूमत  सोचिये ।।

           नवीन मणि त्रिपाठी

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