लुट गयी कैसे रियासत सोचिये ।
हर तरफ़ होती फ़ज़ीहत सोचिये ।।
कुछ यकीं कर चुन लिया था आपको ।
क्यों हुई इतनी अदावत सोचिये ।।
नोट बंदी पर बहुत हल्ला रहा ।
अब कमीशन में तिज़ारत सोचिये ।।
उम्र भर पढ़कर पकौड़ा बेचना ।
दे गए कैसी नसीहत सोचिये ।।
गैर मज़हब को मिटा दें मुल्क से ।
आपकी बढ़ती हिमाक़त सोचिये ।
दाम पर बिकने लगी है मीडिया ।
आ गयी है सच पे आफत सोचिये ।।
आज गंगा फिर यहां रोती मिली ।
आप भी अपनी लियाक़त सोचिये ।।
जातिवादी हो गयी है सोच जब ।
वोट की गिरती सियासत सोचिये ।।
खा रहे दर दर की ठोकर नौजवां ।
बन गयी दुश्मन हुकूमत सोचिये ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
हर तरफ़ होती फ़ज़ीहत सोचिये ।।
कुछ यकीं कर चुन लिया था आपको ।
क्यों हुई इतनी अदावत सोचिये ।।
नोट बंदी पर बहुत हल्ला रहा ।
अब कमीशन में तिज़ारत सोचिये ।।
उम्र भर पढ़कर पकौड़ा बेचना ।
दे गए कैसी नसीहत सोचिये ।।
गैर मज़हब को मिटा दें मुल्क से ।
आपकी बढ़ती हिमाक़त सोचिये ।
दाम पर बिकने लगी है मीडिया ।
आ गयी है सच पे आफत सोचिये ।।
आज गंगा फिर यहां रोती मिली ।
आप भी अपनी लियाक़त सोचिये ।।
जातिवादी हो गयी है सोच जब ।
वोट की गिरती सियासत सोचिये ।।
खा रहे दर दर की ठोकर नौजवां ।
बन गयी दुश्मन हुकूमत सोचिये ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें