बड़ा मासूम आशिक है उसे चालाक मत कहिये ।
मुहब्बत के इरादों को अभी नापाक मत कहिये ।।
है उसने पैंतरा बदला नजर सहमी सी है उसकी ।
अभी उल्फ़त के मंजर में उसे बेबाक मत कहिये ।।
उछाला आपने कीचड़ किसी बेदाग़ दामन पर ।
मुकम्मल बच गयी है आपकी यह नाक मत कहिये ।।
हमें मालूम है लंगर चलेगा आपका लेकिन ।
मिलेगी पेट भर हमको यहाँ खूराक मत कहिये ।।
जो अक्सर साहिलों पर डूबता देखा गया आलिम ।
उसे दरिया के पानी का अभी तैराक मत कहिये ।।
यहां तो असलियत मालूम है हर आदमी की अब ।
पहन रक्खी जो भाड़े की उसे पोशाक मत कहिये ।।
मियाँ हम आपके जुमलों को अब पहचान लेते हैं ।
जमा ली आपने हम पर भी कोई धाक मत कहिये ।।
अभी तो हौसले जिन्दा हैं साहब जंग के लायक ।
हमारे इन इरादों को अभी से ख़ाक मत कहिये ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
मुहब्बत के इरादों को अभी नापाक मत कहिये ।।
है उसने पैंतरा बदला नजर सहमी सी है उसकी ।
अभी उल्फ़त के मंजर में उसे बेबाक मत कहिये ।।
उछाला आपने कीचड़ किसी बेदाग़ दामन पर ।
मुकम्मल बच गयी है आपकी यह नाक मत कहिये ।।
हमें मालूम है लंगर चलेगा आपका लेकिन ।
मिलेगी पेट भर हमको यहाँ खूराक मत कहिये ।।
जो अक्सर साहिलों पर डूबता देखा गया आलिम ।
उसे दरिया के पानी का अभी तैराक मत कहिये ।।
यहां तो असलियत मालूम है हर आदमी की अब ।
पहन रक्खी जो भाड़े की उसे पोशाक मत कहिये ।।
मियाँ हम आपके जुमलों को अब पहचान लेते हैं ।
जमा ली आपने हम पर भी कोई धाक मत कहिये ।।
अभी तो हौसले जिन्दा हैं साहब जंग के लायक ।
हमारे इन इरादों को अभी से ख़ाक मत कहिये ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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