22 22 22 22 22 2
भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।
लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।
महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।
दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।
इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।
लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।
वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।
कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।
होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।
जब उभरा है अक्स तेरा पैमाने में ।।
वक्त मुदर्रिस बनकर ही समझायेगा ।
ज़ाया मत कर जोश उसे समझाने में ।।
जेब और सत्ता से है उनका रिश्ता ।
कौन सुनेगा बात तुम्हारी थाने में ।।
राज़ खोलती मक्तूलों की आँखें सब ।
देर लगी है राहत को पहुँचाने में ।।
महँगा है बाज़ार मुहब्बत का यारो ।
आशिक बिकते इश्क़ यहां फरमाने में ।।
कैसे कह दूँ है दुनिया महफूज़ तेरी ।
मिलते हैं बारूद बहुत तहखाने में ।।
मत छोड़ो कल पर कामों का बोझ कभी ।
आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।
लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।
महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।
दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।
इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।
लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।
वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।
कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।
होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।
जब उभरा है अक्स तेरा पैमाने में ।।
वक्त मुदर्रिस बनकर ही समझायेगा ।
ज़ाया मत कर जोश उसे समझाने में ।।
जेब और सत्ता से है उनका रिश्ता ।
कौन सुनेगा बात तुम्हारी थाने में ।।
राज़ खोलती मक्तूलों की आँखें सब ।
देर लगी है राहत को पहुँचाने में ।।
महँगा है बाज़ार मुहब्बत का यारो ।
आशिक बिकते इश्क़ यहां फरमाने में ।।
कैसे कह दूँ है दुनिया महफूज़ तेरी ।
मिलते हैं बारूद बहुत तहखाने में ।।
मत छोड़ो कल पर कामों का बोझ कभी ।
आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें