2122 1122 1212 22
इक ज़माने से गुलिस्ताँ में है बहार कहाँ ।
जान करता है गुलों पर कोई निसार कहाँ ।।
बारहा पूछ न मुझसे मेरी कहानी तू ।
अब तुझे मेरी सदाक़त पे ऐतबार कहाँ ।।
एक मुद्दत से कज़ा का हूँ मुन्तजिर साहब ।
मौत पर मेरा अभी तक है इख़्तियार कहाँ।।
आपकी थी ये बड़ी भूल मान जाते हम ।
दिख रहे आप गुनाहों पे सोगवार कहाँ ।।
ख़ाब जुमलों से दिखाया न कीजिये इतना ।
आपकी बात में अब रह गई वो धार कहाँ ।।
जीत के जश्न में मदहोश हो गए जब से ।
आपके रंग का उतरा अभी खुमार कहाँ ।।
लद गये दिन वो सियासत के इस तरह साहब ।
कारवाँ आपका निकला मग़र गुबार कहाँ ।।
दफ़्न होती हैं यहाँ रोज ख्वाहिशें सारी ।
ढूढ़िये मत मेरी हसरत का है मज़ार कहाँ ।।
रेत की तर्ह फिसलता है वक्त मुट्ठी से ।
अब मुहब्बत के लिए और इंतजार कहाँ ।।
लोग बेचैन हैं महफ़िल में आज फिर साकी ।
बिन तेरे बज़्म में आता यहाँ करार कहाँ ।।
अब तो क़ातिल की सजा पर हो फैसला कोई ।
जो गिरफ्तार है जुल्फों में वो फरार कहाँ ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
इक ज़माने से गुलिस्ताँ में है बहार कहाँ ।
जान करता है गुलों पर कोई निसार कहाँ ।।
बारहा पूछ न मुझसे मेरी कहानी तू ।
अब तुझे मेरी सदाक़त पे ऐतबार कहाँ ।।
एक मुद्दत से कज़ा का हूँ मुन्तजिर साहब ।
मौत पर मेरा अभी तक है इख़्तियार कहाँ।।
आपकी थी ये बड़ी भूल मान जाते हम ।
दिख रहे आप गुनाहों पे सोगवार कहाँ ।।
ख़ाब जुमलों से दिखाया न कीजिये इतना ।
आपकी बात में अब रह गई वो धार कहाँ ।।
जीत के जश्न में मदहोश हो गए जब से ।
आपके रंग का उतरा अभी खुमार कहाँ ।।
लद गये दिन वो सियासत के इस तरह साहब ।
कारवाँ आपका निकला मग़र गुबार कहाँ ।।
दफ़्न होती हैं यहाँ रोज ख्वाहिशें सारी ।
ढूढ़िये मत मेरी हसरत का है मज़ार कहाँ ।।
रेत की तर्ह फिसलता है वक्त मुट्ठी से ।
अब मुहब्बत के लिए और इंतजार कहाँ ।।
लोग बेचैन हैं महफ़िल में आज फिर साकी ।
बिन तेरे बज़्म में आता यहाँ करार कहाँ ।।
अब तो क़ातिल की सजा पर हो फैसला कोई ।
जो गिरफ्तार है जुल्फों में वो फरार कहाँ ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें