वहां हमने देखा जहां भी गये हैं ।
खुदा के भी यारो हजारों पते हैं ।।
यहाँ मैकदों में मिला है उसे रब ।
कहा रिन्द मस्ज़िद में क्या ढूढते हैं ।।
तिज़ारत वो करने लगे जिस्म की अब ।
न जाने मुहब्बत में क्या चाहते हैं ।।
ज़माने का बदला चलन देखिये तो ।
जरा सी वफ़ा पर वो दिल मांगते हैं ।।
जिन्हें कुछ खबर ही नहीं दर्द क्या है ।
वही ज़ख़्म पर तफ़्सरा कर चुके हैं ।।
अगर वास्ता ही नहीं आपका तो।
मेरा हाले दिल आप क्यूँ पूछते हैं ।।
जो ठुकरा दिए थे मेरी बन्दगी को ।
मेरे घर का वो भी पता खोजते हैं ।।
हमें हिज्र से खास तोहफ़ा मिला है ।
के हम रात भर याद में जागते हैं ।।
मिली मंजिलें हैं उन्हीं को यहां पर ।
समर्पण लिए जो डगर खोजते हैं ।।
उन्हें फ़िक्र में डाल देगी तरक्की ।
जो गड्ढे मेरी राह में खोदते हैं ।।
मुहब्बत पे जिनको भरोसा नहीं है ।
सितम ढा के अक्सर वही रूठते हैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
I
खुदा के भी यारो हजारों पते हैं ।।
यहाँ मैकदों में मिला है उसे रब ।
कहा रिन्द मस्ज़िद में क्या ढूढते हैं ।।
तिज़ारत वो करने लगे जिस्म की अब ।
न जाने मुहब्बत में क्या चाहते हैं ।।
ज़माने का बदला चलन देखिये तो ।
जरा सी वफ़ा पर वो दिल मांगते हैं ।।
जिन्हें कुछ खबर ही नहीं दर्द क्या है ।
वही ज़ख़्म पर तफ़्सरा कर चुके हैं ।।
अगर वास्ता ही नहीं आपका तो।
मेरा हाले दिल आप क्यूँ पूछते हैं ।।
जो ठुकरा दिए थे मेरी बन्दगी को ।
मेरे घर का वो भी पता खोजते हैं ।।
हमें हिज्र से खास तोहफ़ा मिला है ।
के हम रात भर याद में जागते हैं ।।
मिली मंजिलें हैं उन्हीं को यहां पर ।
समर्पण लिए जो डगर खोजते हैं ।।
उन्हें फ़िक्र में डाल देगी तरक्की ।
जो गड्ढे मेरी राह में खोदते हैं ।।
मुहब्बत पे जिनको भरोसा नहीं है ।
सितम ढा के अक्सर वही रूठते हैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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