1222 1222 1222 1222
यहां इंसानियत से ग़र सभी का राबिता होता ।
यक़ीनन मुल्क में अमनो सुकूं का दबदबा होता ।।
मुहब्बत के उसूलों को अगर उसने पढ़ा होता ।
न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता ।।
बहुत बेचैन दरिया की उसे पहचान है शायद ।
वग़रना वह समंदर तो नदी को ढूढ़ता होता ।।
तुम्हारी शर्त को हम मान लेते बेसबब यारों।
हमें अंज़ामे रुसवाई अगर इतना पता होता ।।
सियासत दां से गर मिलता कहीं अमनो सुकूँ कोई।
तो उनका भी भला होता हमारा भी भला होता ।।
अमीरों की हिमायत में न होते आप तो शायद ।
नहीं मुफ़लिस की दीवारों पे बुलडोजर चला होता ।।
कदम को चूम लेती क़ामयाबी एक दिन बेशक़ ।
बचा तेरे इरादों में अगर कुछ हौसला होता ।।
निभे हैं कब वहां रिश्ते बिखरते टूटते पाये ।
जहाँ नज़दीकियों के बीच में कुछ फ़ासला होता ।।
असर करतीं मेरी मजबूरियां जो आपके दिल तक।
तो मेरा भी यक़ीनन आप से ही वास्ता होता ।।
परिंदा उड़ के आ जाता तुम्हारे बाग में लेकिन ।
कफ़स से भी निकलने का कोई तो रास्ता होता ।।
जरा सा मुश्किलों पर गौर कर लेना जरूरी है ।
कोई इंसान मर्जी से नहीं अब बेवफ़ा होता ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
यहां इंसानियत से ग़र सभी का राबिता होता ।
यक़ीनन मुल्क में अमनो सुकूं का दबदबा होता ।।
मुहब्बत के उसूलों को अगर उसने पढ़ा होता ।
न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता ।।
बहुत बेचैन दरिया की उसे पहचान है शायद ।
वग़रना वह समंदर तो नदी को ढूढ़ता होता ।।
तुम्हारी शर्त को हम मान लेते बेसबब यारों।
हमें अंज़ामे रुसवाई अगर इतना पता होता ।।
सियासत दां से गर मिलता कहीं अमनो सुकूँ कोई।
तो उनका भी भला होता हमारा भी भला होता ।।
अमीरों की हिमायत में न होते आप तो शायद ।
नहीं मुफ़लिस की दीवारों पे बुलडोजर चला होता ।।
कदम को चूम लेती क़ामयाबी एक दिन बेशक़ ।
बचा तेरे इरादों में अगर कुछ हौसला होता ।।
निभे हैं कब वहां रिश्ते बिखरते टूटते पाये ।
जहाँ नज़दीकियों के बीच में कुछ फ़ासला होता ।।
असर करतीं मेरी मजबूरियां जो आपके दिल तक।
तो मेरा भी यक़ीनन आप से ही वास्ता होता ।।
परिंदा उड़ के आ जाता तुम्हारे बाग में लेकिन ।
कफ़स से भी निकलने का कोई तो रास्ता होता ।।
जरा सा मुश्किलों पर गौर कर लेना जरूरी है ।
कोई इंसान मर्जी से नहीं अब बेवफ़ा होता ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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