2122 1212 22
गुल जो सूखा किताब में देखा ।
आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।
बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।
झाँक कर वह नकाब में देखा ।।
मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।
तेरा चेहरा शराब में देखा ।।
वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।
हड्डियां कुछ कबाब में देखा ।।
तोड़ पाता उसे भला कैसे ।
हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।
डाल कर फूल राह में सबके ।
मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।
लुट गईं रोटियां गरीबों की ।
हादसा इंकलाब में देखा ।।
तेरे आने का जिक्र होते ही ।
रंग आता शबाब में देखा ।।
कौन कहता है तुम नशे में हो ।
मैंने तुमको हिसाब में देखा ।।
हैं मुहब्बत बड़ी या फिर दौलत ।
आपके इंतखाब में देखा ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
गुल जो सूखा किताब में देखा ।
आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।
बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।
झाँक कर वह नकाब में देखा ।।
मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।
तेरा चेहरा शराब में देखा ।।
वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।
हड्डियां कुछ कबाब में देखा ।।
तोड़ पाता उसे भला कैसे ।
हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।
डाल कर फूल राह में सबके ।
मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।
लुट गईं रोटियां गरीबों की ।
हादसा इंकलाब में देखा ।।
तेरे आने का जिक्र होते ही ।
रंग आता शबाब में देखा ।।
कौन कहता है तुम नशे में हो ।
मैंने तुमको हिसाब में देखा ।।
हैं मुहब्बत बड़ी या फिर दौलत ।
आपके इंतखाब में देखा ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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