2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी जीने का शायद फ़लसफ़ा मिल जाएगा ।
उनसे मिलकर ख़्वाब का इक सिलसिला मिल जाएगा ।।
उसकी ज़िद है ख़त मुझे लिक्खेगा वो इस शर्त पर ।
जब उसे दिल का मेरे लिक्खा पता मिल जाएगा ।।
ढूढता ही रह गया ताउम्र यारो हमनशीं ।
क्या ख़बर थी एक दिन इक बेवफ़ा मिल जाएगा ।।
कहकशाँ से इक सितारा टूटा इस उम्मीद में ।
चाँद मुझको बेख़ुदी में घूमता मिल जाएगा ।।
इश्क़ में तू डूब कर तो देख कुछ दिन ऐ बशर ।
राह ए उल्फ़त का तुझे भी तज़रिबा मिल जाएगा ।।
माँगिये दुनिया से मत कोई मदद इस दौर में ।
सबकी दर से इक बहाना फिर नया मिल जाएगा ।।
कुछ गिला शिकवा शिकायत और थोड़ी तोहमतें ।
इससे ज़्यादा उनसे मिलकर और क्या मिल जाएगा ।।
मन्दिर ओ मस्ज़िद में वो मिलता नहीं है आजकल ।
अपने अंदर ढूढ तू तुझको ख़ुदा मिल जाएगा ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी।
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