तीखी कलम से

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

ख्वाब का इक सिलसिला मिल जाएगा

 2122 2122 2122 212

ज़िन्दगी  जीने  का  शायद   फ़लसफ़ा  मिल  जाएगा ।

उनसे मिलकर ख़्वाब का इक सिलसिला  मिल जाएगा ।।


उसकी ज़िद है ख़त मुझे लिक्खेगा वो इस शर्त पर ।

जब  उसे दिल का मेरे लिक्खा पता मिल जाएगा ।।


ढूढता   ही   रह   गया   ताउम्र  यारो   हमनशीं ।

क्या ख़बर थी एक दिन इक बेवफ़ा मिल जाएगा ।।


कहकशाँ  से  इक  सितारा  टूटा  इस  उम्मीद  में ।

चाँद  मुझको   बेख़ुदी  में  घूमता  मिल  जाएगा ।।


इश्क़  में तू  डूब  कर तो देख  कुछ  दिन ऐ  बशर ।

राह ए उल्फ़त का तुझे भी तज़रिबा मिल जाएगा ।।


माँगिये दुनिया से मत कोई मदद इस दौर में ।

 सबकी दर से  इक बहाना फिर नया मिल जाएगा ।।


कुछ गिला शिकवा शिकायत और थोड़ी तोहमतें ।

इससे ज़्यादा उनसे मिलकर और क्या मिल जाएगा ।।


मन्दिर ओ मस्ज़िद में वो मिलता नहीं है आजकल ।

अपने अंदर ढूढ तू तुझको ख़ुदा मिल जाएगा ।।


              --नवीन मणि त्रिपाठी।

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