तीखी कलम से

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

लगने लगी हैं बोलियाँ

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क्या क्या ख़बर सुनाऊं तुम्हें इस जहान  की ।

लगने  लगी  हैं  बोलियां   मेरे  मकान   की ।।


महँगाई डँस रही हो जहाँ रोज सुबहो शाम  ।

हर आदमी को फ़िक्र है अपने लगान की ।।


राशन जो मुफ़्त खा रहे अस्सी करोड़ लोग ।

चर्चा  करें  तो  कैसे  करें स्वाभिमान की ।।


करना है जिसने सीखा ख़ुशामद का इक हुनर ।

छूते  बुलंदिया  हैं  वही  आसमान  की ।।


घर  होंगे जमीदोंज  वही आजकल  यहाँ ।

तिरछी  नज़र  पड़ेगी  जहाँ हुक्मरान की ।।


ऐ हमनवा न रोज़ तू जुमलो की बात कर ।

कीमत सियासतों में कहाँ है ज़ुबान की।।


आरोप उन पे ही लगे क्यूँ लूट पाट के ।

खाई थी जिसने कस्में कभी संविधान की ।।


             -- नवीन मणि त्रिपाठी

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