तीखी कलम से

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

नव सृजन दीप बनना होगा

 नव सृजन दीप बनना होगा 

जीवन पथ पर चलना होगा


दो अंकुर हृदय वाटिका  के 

पोषित तुम रक्त कर्णिका के

तुम  हो भविष्य  मेरे  घर के 

सहयोगी हो  जीवन  भर के 

तुम मीत रहोगे पल पल  के 

लाठी  हो  तुम  मेरे  कल के 


कर्मों  की  उच्च  श्रृंखला  से 

उर   अंधकार   हरना   होगा 

नव सृजन दीप  बनना  होगा

जीवन पथ पर चलना होगा 


जब व्यथित हृदय हो जाये कभी 

मन की क्यारी मुरझाए कभी 

जब तेज मन्द हो जाये कभी 

साँसों का स्वर खो जाए कभी 

यह अहंकार बढ़ जाये कभी 

नीरसता मन मे छाए कभी 

जब राह नहीं मिल पाए कभी 


उस पावन जगत नियंता से

 तब आत्म शक्ति भरना होगा 

नव सृजन दीप बनना होगा

 जीवन पथ पर  चलना होगा


कुछ कंटकमय पल आएंगे 

नित अनुभव नया कराएंगे 

कुछ दृष्टिकोण मिल जाएंगे 

हर पंथ स्वतः खुल जाएंगे 

मन में प्रकाश  भर  जाएंगे 

तम  तुमको छू ना पाएंगे 


हर संघर्षों की धारा के 

प्रतिकूल तुम्हे बहना होगा 

नव सृजन दीप बनना होगा 

जीवन पथ पर चलना होगा


अभिलाषाओं का मान रहे 

सुंदर कर्मो का ध्यान रहे 

आध्यात्म चेतना ज्ञान रहे

मनावता का सम्मान रहे 

उत्कृष्ट लक्ष्य संज्ञान रहे 

सर्वदा दूर मदपान रहे 


चारित्रिक श्रेष्ठ कसौटी पर 

सोना बनकर ढलना होगा

नव सृजन दीप बनना होगा 

जीवन पथ पर चलना होगा 


यह सत्य यथावत निश्चित है 

आना जाना अनुबंधित है 

जीवन, निर्वाण से परिचित है

संशय इसमें ना  किंचित है 

आत्मा ईश्वर से  सिंचित  है 

सन्देश   सदा  ये  इंगित  है 

नव जीवन पुनः सुनिश्चित है 


उस मृत्यु के विश्रामालय से 

नव वस्त्र पहन उठना होगा 

नव सृजन दीप बनना होगा 

जीवन पथ पर चलना होगा


        -नवीन मणि त्रिपाठी


नोट - यह रचना 2005 में 20 वर्ष पहले विनीत -पुनीत के लिए लिखी थी ।

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