ग़ज़ल
2122 2122 212
दिल बहुत बेचैन हैं यूँ शाम से
वस्ल होगा फिर उसी गुलफ़ाम से ।
जब से आई ये ख़बर आएंगे वो ।
हसरतें जिंदा हुईं पैग़ाम से ।।
बेख़ुदी में है कोई दीवानगी ।
किसको डर है अब किसी अंजाम से ।।
है यहीं उल्फ़त की यारो दास्ताँ ।
उम्र भर रिश्ता रहा इल्जाम से ।।
ये तसव्वुर भी मेरा धोका ही था ।
लोग जीते हैं यहाँ आराम से ।।
आप ने जब बेवफाई कर ही दी
दोस्ती उनकी हुई है जाम से ।
अक्ल आई ये तेरे जाने के बाद ।
बद कहीं बेहतर है यूँ बदनाम से ।।
अब जमाने से शिकायत क्या करें ।
जब नहीं शिकवा दिल ए नाकाम से ।।
नवीन
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