तीखी कलम से

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

वस्ल होगा फिर उसी गुलफ़ाम से

 ग़ज़ल

2122 2122 212


दिल बहुत बेचैन हैं यूँ शाम से 

वस्ल होगा फिर उसी गुलफ़ाम से ।


जब से आई ये ख़बर आएंगे वो ।

हसरतें जिंदा हुईं पैग़ाम से ।।


बेख़ुदी में है कोई दीवानगी ।

किसको डर है अब किसी अंजाम से ।।


 है यहीं उल्फ़त की  यारो दास्ताँ ।

उम्र भर रिश्ता रहा इल्जाम से ।।


ये तसव्वुर भी मेरा धोका ही था ।

लोग जीते हैं यहाँ आराम से ।।


आप ने जब बेवफाई कर ही दी 

दोस्ती उनकी हुई है जाम से । 


अक्ल आई ये तेरे जाने के बाद ।

बद कहीं बेहतर है यूँ बदनाम से ।।


अब जमाने से शिकायत क्या करें ।

जब नहीं शिकवा दिल ए नाकाम से ।।


             नवीन


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें