तीखी कलम से

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

हर तरफ़ तिश्नालबी है शह्र में

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हर  तरफ़   तिश्ना- लबी  है  शह्र  में ।

सबकी अपनी  बेबसी  है  शह्र  में ।। 1


मन्दिर ओ मस्ज़िद को लेकर देखिये  

फ़िर  कहीं   चर्चा   हुई  है  शह्र  में ।।2


फ़िर  जला  देंगी  घरों  को  नफ़रतें ।

आग  कुछ  ऐसी  लगी  है शह्र  में ।।3


कौन मुज़रिम है फ़िजा  का  ढूढिये ।

क्यों  हवा  बदली  हुई  है  शह्र  में ।।4


बेचकर आया है वो अपना ज़मीर ।

जिसकी इज्ज़त कीमती है शह्र में ।।5


सिर्फ़ मतलब के लिए मिलते हैं लोग ।

कहने को दरिया दिली है शह्र में ।।6


आदमी की दांव पर  है  ज़िन्दगी ।

मौत   से  रस्साकशी  है शह्र  में ।।7


लाती हैं मजबूरियां फुटपाथ तक ।

जीस्त आकर सो रही है शहर में ।।8


ख्वाहिशें  दम  तोड़ती  हैं   बारहा ।

हो रही क्यों  खुदकुशी है शह्र में  ।।9


ख़ुद को जब उसने बना डाला मशीन ।

तब  कहीं  रोटी  मिली  है शह्र में ।।10


छापते अब  क्यूँ  नहीं  अखबार  ये ।

भुखमरी कितनी  बढी है शह्र में ।। 11


      -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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