तीखी कलम से

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

मुझे बचाने मेरा नाखुदा नहीं आया

 1212 1122 1212 22

उसे   हयात  का  असली   मज़ा   नहीं आया ।

तमाम   उम्र    जिसे    राब्ता    नहीं   आया ।।1


करीब ला दे जो मंजिल के आस पास मुझे ।

मेरे   दिमाग़  में  वो   रास्ता  नहीं  आया ।। 2


 ख़ुलूस दिल ने लिखा ख़त था एक दिन तुझको ।

तेरी तरफ़ से  कोई  मसबरा   नहीं  आया ।।3


अभी तलक है सलामत जो अम्न की बस्ती ।

है शुक्र रब का कोई सिर- फिरा नहीं आया ।।4


डुबा दिया मेरी कश्ती को मेरे  अपनों ने ।

मुझे  बचाने  मेरा  नाखुदा  नहीं  आया ।।5


लगा रहा है वो इल्ज़ाम मेरी चाहत पर ।

जो मेरे दर पे कभी इक दफ़ा नहीं आया ।।6


तेरे  गुनाह  की  गुंजाइशें  सलामत   हैं ।

अभी चमन में कोई जलजला नहीं आया ।।7


ये कातिलों का हुनर है या कोई मजबूरी ।

के ज़िक्र उनके किसी नाम का नहीं आया ।।8


             -- नवीन मणि त्रिपाठी

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