तीखी कलम से

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

जा रहे आप भी उधर शायद

 ग़ज़ल 


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दिल  मे  बैठा  है कोई डर  शायद ।

हो   गए  आप  बाख़बर  शायद ।।1


झोलियां भर के जा नहीं  सकते ।

आप पर है कड़ी  नज़र  शायद ।।2


लोग जुमलों को अब नहीं सुनते । 

वक्त उनका गया ठहर शायद  ।।3


हर   कदम  पर  तमाम  धोखे  हैं ।

मिलना मुश्किल है मोतबर शायद ।।4


अब तो चेहरे की चमक गायब है । 

दर्द  कोई   गया  उभर  शायद ।।5


आपके  तो  करम  कुछ ऐसे  हैं । 

याद  रक्खेंगे  उम्र  भर  शायद ।।6


खो  न   जाए  कहीं   मेरी   कुर्सी ।

फ़िक्र का हो चुका असर शायद ।।7


छूट जाता है तख़्त ओ ताज़ जिधर ।

जा  रहे  आप  भी  उधर  शायद ।।8


       -- नवीन

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