तीखी कलम से

बुधवार, 30 नवंबर 2011

तुझे मेरी वफाओं से ....

तुझे  मेरी  वफाओं  से  शिकायत  हो  गयी होगी |
बहुत रोका था नज़रों को हिमायत हो गयी होगी ||

इन  फिजाओं  में  भी,  महकी  है कोई  कस्तूरी |
किसी फतबे के  साए में हिदायत  दी गयी होगी ||


किसी पाजेब की घुघुरू की खनक रात भर आयी |
किसी की शाम  पे नज़रें इनायत  हो गयी होगी ||
   
चाँद   आया   था   तेरे   बज्म  में  शरमाया  सा |
बड़े  बेमोल  लम्हों  में  रियायत  हो  गयी होगी ||
                                                            - नवीन

5 टिप्‍पणियां:

  1. tripathi ji

    sadhuvaad

    aesi ras mayi rachna ke liye.

    main sahityakar to nahi par ek prashanshak ke roop me main kah raha hoon ki aapki kavitae jabardast hain


    sadhuvaad fir se


    ashutosh jha

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  2. बड़े बेमोल लम्हों में रियायत हो गयी होगी ||
    jitni satik utni hi prabhavi ....kalam ka anubhav jhalak raha hai !! sundar se bhi kuch aur jyada !!

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  3. अच्छी है गज़ल.. बहुत आसानी से गाई जा सकती है.. भाव खुलकर व्यक्त हुए हैं!!

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  4. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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