तीखी कलम से

रविवार, 13 नवंबर 2011

भारतीय बाल मजदूर

 मित्रो मजदूर दिवस पर मेरी यह रचना सप्रेम भेट


तपती दोपहरी में ,
पसीने से लथ पथ ,
सड़क पर पत्थर बिखेरता एक मासूम |
बार बार कुछ सोचता है ,
मन को कुरेदता है |
आज माँ खुश हो जाएगी ,
कुछ आटा चावल मगाएगी |
दर्जी के पास भी जाना है ,
माँ के फटे आँचल में ,
चकती लगवाना है |
छोटा भाई तो कल भूँखा ही सोया था ,
रोटियां कम थी इस लिए रोया था |.
आज पूरे सौ मिलेंगे ...
इतनी महगाई में क्या ला सकेंगे.... ?
अचानक ठीकेदार प्रकट होता है |
अपनी जुबान से आग उगलता है |
देख ! तुझसे ज्यादा काम तेरे बड़ों ने किया है |
तू ने क्या कामचोरी किया है ?
मासूम तिलमिलाया ,
कुछ बुदबुदाया |
बाबु जी ! मेरे हाथ ... मेरी टोकरी छोटी है |
घर में ना चावल ना रोटी है |
धीरे धीरे पूरा कर दूंगा ,
आप की शिकायत को दूर कर दूंगा |
आज मुझे कुछ पैसे दे देना |
थोड़ी दया कर देना |
लाल हो गयीँ ठीकेदार की ऑंखें |
कुछ नहीं सुननी तेरी बातें |
बात ठीके की थी |
ना छोटे ना बड़े की थी |
तूने काम पूरा नहीं किया है |
कंपनी को धोखा दिया है |
अभी चुप चाप घर चले जाना ,
कल से काम पर मत आना |
मासूम चकरा गया |
आँखे भर आयीं .....
शब्द भर्रा गया |
नन्हीं सी कल्पना भी हो गयी चूर चूर |
यही है भारतीय बाल मजदूर |
यही है भारतीय बाल मजदूर ||
_नवीन

1 टिप्पणी: