तीखी कलम से

बुधवार, 10 सितंबर 2014

आरक्षण समर्थक मोहन भागवत के नाम पत्र


नहीं दिखे तुम्हें !
आरक्षण की कुंठा से ग्रसित 
योग्य छात्र आत्महत्या करते हुए।
नहीं देख पाए तुम 
प्रतिभाओ को चौराहों पर जलते हुए।
नजर अंदाज कर गये सवर्णों की दरिद्रता की पराकाष्ठा।
कहाँ सजो पाए तुम
निष्पक्ष निष्ठा ?
भूखे विलखते सवर्ण बच्चों के 
मुख से छिनते निवाले।
गरीबी के दंश से मरते मासूम 
भोले भाले।
उनके भी घर में छत नहीं
खेती के लिए जमीन नहीं।
खाने के लिए भर पेट अन्न नहीं।
बस्त्रो से ढकता तन नहीं ।


भीख मागते है उनके बच्चे।
जिन्हें दलित कहते है 
उनके जूठे बर्तन धोकर
 पेट पालते हैं ये बच्चे।
सवर्णों की पढ़ी लिखी बेटियां 
अब ब्यूटी पार्लर चलाती है।
जिन्हें दलित कहते हैं उनको सजाती हैं।
हिंदुत्व को टुकडो टुकड़ों में 
बाटने वाली आरक्षण नीति ।
हजार वर्ष पीछे ले गयी देश की उन्नति।


आज का हिन्दू
आरक्षण के लिए
बाबरी मस्जिद पर गोलिया बरसाने 
वालो का समर्थक बन जाता है।
उनकी सरकार को चुन कर लाता है।
धर्म परायणता के ठीकेदार् तो तुम्ही थे
देश में धार्मिक संस्कार के आधार भी तुम्ही थे।
यही है तुम्हारे हिंदुत्व की ताकत।
जिसे तुमने अब पहचाना
फिर बुन लिया 
एक हजार वर्ष तक आरक्षण देने का 
ताना बाना।


देश में सत्य के समर्थक की पहचान थी
 तुम्हारी संस्था।
सभी सवर्णों की शान थी तुम्हारी संस्था।
एक उम्मीद की किरण
शायद तुम न्याय दिलाओगे।
देश को आरक्षण मुक्त कराओगे।
पर यह क्या किया??
भरोसे को धोखा दिया !!!!!!
तुम्हें शर्म नहीं आयी ???
तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हे क्यों नहीं धिक्कार पाई?
तुमने कैसे खो दी विश्वसनीयता ?
कहाँ खो गयी तुम्हारी मानवता ?
अफ़सोस ये की औरो की तरह तुम भी वोट के 
सौदागर बन गये।
सिद्धांतो से समझौता कर गये।
अब तुम्हारी पहचान !!!!!!
किसी राजनीतिक पार्टी की 
कठपुतली के सिवा कुछ नहीं।
संस्था में वो बात नहीं।
तुम्हारे लिए मेरे पास अब वो जज्बात भी नहीं।
जिस तरह सूरज पूरब में 
कभी अस्त नहीं हो सकता ।
उतना ही सच  है ,....
कोई आरक्षण समर्थक,
कभी देश भक्त नहीं हो सकता ।
कभी देश भक्त नहीं हो सकता।।

                                                        -नवीन

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