तीखी कलम से

शनिवार, 20 सितंबर 2014

नारी संवेदना

मुक्तक


एक  नारी  का जीवन  भी अभिशाप  है ।
जन्म   लेना   बना   क्यों   महापाप   है ।।
भेडियों   के   लिए ,जिन्दगी   क्यों बनी ।
हे    विधाता    तेरा ,कैसा   संताप    है ।।



अब  तो  जाएँ  तो जाएँ  कहाँ   बेटियां ।
सर  को  अपने  छिपायें  कहाँ  बेटियां ।।
इस ज़माने की नजरों को  क्या हो गया।
घर   में  लूटी   गयीं ,  बेजुबां   बेटियां ।।



जुर्म  की  दास्ताँ  भी  लिखी  ना  गयी ।
लाश  देखो  जली-अधजली  रह गयी।।
जब  दरिंदों  ने  बारिस  की तेजाब की।
वो  तड़पती  विलखती पडी  रह  गयी।।



माँ   की  ममता  भी, कैसी   पराई   हुई ।
आफतें  जान  पर , उसकी   आई   हुई।।
कोख   में    जिन्दगी ,  माँगती   बेटियां ।
दहशते    मौत    से  , वो    सताई  हुई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-09-2014) को "जिसकी तारीफ की वो खुदा हो गया" (चर्चा मंच 1744) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुंदर रचना , सर धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  3. हकीकत लिखी ही जमाने की हर छंद में ...

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  4. गहरे दर्द को उकेरा है आपने. वाकई बहुत भयावह स्थति बनती जा रही है अपने देश में.

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  5. Katu saty hai naari ke jivan ka.... Bahut sunder abhivyakti marmsparshi !!

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