तीखी कलम से

रविवार, 7 सितंबर 2014

मित्र नहीं होता

दृष्टि , ईमानदारी,
निगाह  , नियति,
इरादा.....
मित्रता  से पूर्व ही किये जाने लगे 
ये परीक्षण ।
अब बहुत गहराई से
 होने लगा है निरीक्षण।
लेन देन, सौदे बाजी, 
सम्बन्धों की बद मिजाजी ।
तीखे सवालों  का व्यूह, 
प्रस्तर की भाति मौन.... ।
प्रत्युतर  दे कौन ?
सवालों से आवाक् !
कैसे कह दूं ......बेबाक।
सच निकलेगा नहीं ।
झूठ  की फितरत नहीं ।
फिर तनाव की खरीदारी।
बे मेल यारी ।
 उत्पन्न अनुराग,
आकर्षण-प्रतिकर्षण 
वैचारिक संघर्षण । 
दुविधा पूर्ण  .....
मित्रता  की मनोविकृति 
कहाँ से आएगी ?
सामाजिक  परिष्कृति।।
मत जाओ , मत स्वीकारो
कभी मत पुकारो 
 जो आपके आचरण को
मर्यादित  संबंधो के व्याकरण को।
तराजू पर  अक्सर
 कई बार तोले ।
फिर हौले से शब्द बोलें ।
सा री  .............सॉरी।
ये  है अविश्वास की रेखाओं वाली
अजीब  बीमारी।
संवेदनाये धिक्कारती हैं।
अंतरात्मा कचोटती है ।
सबको मित्र कहना जरूरी नहीं होता ।
वैचारिक समानता के बिना 
 कोई मित्र नहीं होता ।।
हां मतलब परस्त तो मिलेंगे ।
पर  मित्र नहीं होता ।।
पर मित्र नहीं होता।।

          नवीन

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