तीखी कलम से

सोमवार, 29 जून 2015

पापा के नाम

पापा अब  मेरे आँसू  की तुम
और    परीक्षा    मत    लेना ।
सैलाब   उमड़ते   आँखों  में
अब  धैर्य की शिक्षा मत देना।


मैं  टूट रहा  हूँ  अब  प्रतिपल।
खो  रहा अनवरत हूँ सम्बल ।
मैं  शक्तिहीन दुःख में विलीन।
आभासित  जैसे   कर्म  हीन ।
ईश्वर  भी  हुआ  पराया  सा ।
मन  व्याकुल  है  बौराया सा ।



मैं  भीख   मांगता  प्राणों की
वह चाह  रहा  सब हर लेना ।।
पापा अब  मेरे आंसू की तुम
और   परीक्षा    मत    लेना ।।



आडम्बर   सा  ईश्वर  लगता ।
निष्तेज  हुई  जाती   क्षमता ।
जप  पूजन  सारे  व्यर्थ  लगे ।
संभावित   यहां  अनर्थ  लगे ।
सिसकियाँ रोक कर जीता हूँ।
आँसू  को  छुपकर  पीता हूँ ।



ईश्वर  ही   न्याय  विधाता  है
फिर  ऐसी  दीक्षा  मत  देना ।
पापा अब मेरे  आंसू की तुम
और   परिक्षा    मत   लेना ।।



है रोम  रोम ऋण भार  लिए ।
तुमसे  ही  जीवन सार  लिए ।
तुम  भाग्य  विधाता  हो  मेरे ।
इस  जन्म  के  दाता  हो  मेरे।
मैं शून्य विकल्पों के  संग  में ।
निश्चेतन   सा  प्रस्तर  रंग  में ।



नौका   आशा   की   डूब  रही
अब मुश्किल  बहुत इसे  खेना ।
पापा  अब  मेरे आंसू की  तुम
और     परीक्ष    मत    लेना।।



सब  दृश्य  पटल  पर घूम रहा ।
बचपन  का  दर्पण लौट  रहा ।
संघर्षो  की  वह  अमर  कथा।
देखी    मैंने    सम्पूर्ण    व्यथा।
वह आत्म शक्ति वह  संस्कार ।
है   मिला  मुझे  अद्भुद  दुलार ।



मैं बिछड़ सकूँ  न अब  तुमसे।
आशीष  मुझे  शत  शत देना ।
पापा अब  मेरे आंसू  की तुम
और   परीक्षा    मत    लेना ।।



दुर्भाग्य चरम पर बोल रहा ।
अंतस का साहस डोल रहा ।
इस अवनी में मैं बिखर रहा ।
असहाय बना मैं सिहर रहा ।
निः शब्द हुआ मैं सुलग रहा ।
हूँ मौन अंक से  विलख रहा ।



यह  तीक्ष्ण  वेदना   है  निर्मम
अभिशप्त  समीक्षा  मत  देना ।
पापा अब  मेरे आंसू  की  तुम
और    परीक्षा    मत     लेना ।।

         
                    नवीन

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