तीखी कलम से

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

सवर्णो के लिए कुछ तो रियायत कीजिये साहब

सवर्णों  के  लिए  कुछ  तो रियायत कीजिये  साहब ।
ये  भूखे  मर  रहे   रोटी   इनायत   कीजिये  साहब ।।

फांकता धूल  सड़को  पर जिसे काबिल कहा सबने ।
फकाना  और  क्या  क्या है हिदायत दीजिये साहब ।।

जहाँ  तालीम  की   खातिर  बिका  है  बाप  बेचारा।
उसे हक़  है निवाले  का  निहायत  दीजिये  साहब ।।

तड़पते  भूँख  से बच्चों  की  आँखों  में  बगावत है ।
जले  न  मुल्क  ये  तेरा  रिवायत  लीजिये   साहब ।।

तरक्की  है  वहां ठहरी जहाँ  काबिल की इज्जत है ।
अपाहिज के लिए न अब  हिमायत कीजिये साहब ।।

मुल्क  होगा कभी  मेरा  था आजादी  का ये मकसद।
न हिंदुस्तान को अब फिर बिलायत  कीजिये  साहब ।।

है  कुदरत के  वसूलों  में  जो   बेहतर  है वो  छीनेगा।
अमन का घर गिराकर मत शिकायत कीजिये साहब।।

रोजियां   छीन  ली  उसकी  गरीबी  मौत  से   बदतर।
जात  ऊँची  बताकर  मत  किफ़ायत कीजिये साहब।।

                             --नवीन मणि त्रिपाठी

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