तीखी कलम से

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

बुझी बारूद पर यकीन बनाए रखिये

---***ग़ज़ल***---

बचे  न   मुल्क   वह   चिराग   जलाए   रखिये ।
उन  लुटेरों  की  सियासत  को  चलाए   रखिये ।।

खा  गए  शौक  से  चारा  जो  मवेशी  का यहां।
उनकी खिदमत में इलेक्शन को सजाये रखिये।।

फिर  से मण्डल की दगी तोप ले  के निकले है।
बुझी   बारूद   पर   यकीन   बनाये   रखिये ।।

जात  के  नाम पर  तक़रीर  है खुल्लम खुल्ला।
कुछ  अदालत  पे  नजर अपनी जमाये रखिये।।

सिर्फ घोटाला ही मकसद हो जिनकी कुर्सी का।
वोट  का  भाव  तो  अपना  भी  बढ़ाये  रखिये।।

कुर्सियां   नोचते  गिद्धों  की   तरह   ये आलिम।
इनकी    तारीफ   चैनलो   से   सुनाये  रखिये ।।

वो   तरक्की   की  बात  भूल   से  नहीं  करते ।
राज  जंगल  की  बात  मन  में  बिठाये  रखिये।।

कुतर  कुतर  के खा गए जो मुल्क की इज्जत।
उनकी इज्जत के लिए खुद को मिटाये रखिये ।।

                   -नवीन मणि त्रिपाठी

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 10 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सिर्फ घोटाला ही मकसद हो जिनकी कुर्सी का।
    वोट का भाव तो अपना भी बढ़ाये रखिये।।
    कुतर कुतर के खा गए जो मुल्क की इज्जत।
    उनकी इज्जत के लिए खुद को मिटाये रखिये ।।
    ....बड़े अच्छे से लताड़ लगाई है...
    बहुत सुन्दर ..

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  3. बहुत ही करारा व्यंग ..
    लेकिन इन मोटी चमड़ी वालों पर क्या असर होगा...

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