तीखी कलम से

बुधवार, 2 मार्च 2016

ग़ज़ल

अहले  चमन  की  दास्ताँ लिखते रहो ।
कुछ  तो  उसका राज़दाँ  बनते  रहो ।।

हो   रही   डुग्गी   मुनादी   इश्क  की ।
तूम  उसे   बस   मेहरबाँ  कहते  रहो ।।

मत लगा  तू  तोहमतें  नाजुक  है  वो ।
राह   पर   बन   बेजुबाँ   चलते  रहो ।।

अक्स  कागज पर सितमगर का लिए ।
शब् में  बनकर  के  शमाँ  जलते  रहो ।।

इल्तजा  भी  क्या  है  तुझसे  ऐ  सनम ।
चाहतों  का   यह   कुरां   पढ़ते   रहों ।।

जिंदगी  का  है  तकाजा   बस   यहां ।
इश्क  पर  साँसे  फनां   करते    रहो ।।

      नवीन

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