तीखी कलम से

सोमवार, 1 अगस्त 2016

शायद नए सितम का नया सिलसिला मिले

मासूमियत  के   साथ   बहुत   बेवफा  मिले ।
चेहरे   तमाम   उम्र   हकीकत   जुदा  मिले ।।

देकर   गया   है   ऐतबार   फिर   नया नया ।
शायद नए सितम का नया सिलसिला मिले।।

है   इश्क़   का   बुखार  क्यूँ   तेरे  दयार   में ।
तेरे  शहर  में   लोग  भी   शादी  सुदा  मिले ।।

आई   कहाँ   वो   बात  हमारी  जुबान   पर ।
जिस  हौसले  में  तुझसे  हजारों दफ़ा मिले ।।

ये  इन्तजार   उसको  जमाने  से आज  तक ।
ठहरी  नजर  के  पास  कोई  दिलरुबा मिले ।।

तुझसे  मिली  निगाह  बदलती  फ़िजा  मिली ।
बदले   सभी   फकीर   बदलते   खुदा  मिले ।।

हुस्नो   मिजाज   देख  के   तारीफ  क्या  हुई ।
देखो   मेरे  हुजूर  अभी  तक   खफा   मिले ।।

क्या  बात   दुश्मनो  की  करूँ  मैं यहां नवीन ।
अक्सर  मेरे  अजीज  उसी  पर  फ़िदा  मिले ।।

        --नवीन मणि त्रिपाठी

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2016) को "हम और आप" (चर्चा अंक-2423) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पिंगली वैंकैया - भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सचमुच बड़ी ही प्यारी गज़ल है मेरे हुज़ूर
    चाहत का यहीं से तो कोई सिलसिला मिले!

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