तीखी कलम से

शनिवार, 5 नवंबर 2016

याद शब् भर कई दफा आई

-------******ग़ज़ल******---------

2122 1212 22
कोई   खुशबू   भरी   हवा  आई ।
याद  शब्  भर  कई  दफ़ा  आई।।

दर्द  दिल  का  नही  मिटा  पाया।
जब से  हिस्से  में  बेवफा  आई ।।

कौन  कहता  है  नासमझ  है वो ।
दुश्मनी  वक्त   पर  निभा  आई ।।

उम्र    गुजरी   जिसे   मनाने   में ।
आज  लेकर  नई   फ़िज़ा  आई ।।

कुछ तो  नीयत  में  फासले  होंगे ।
वो  अदब  में  नजर  झुका आई ।।

चन्द  लम्हे   थे   जिंदगी   खातिर ।
बेरहम  हो  के  फिर  क़ज़ा  आई।।

है  अलग   बात   भूल   जाने  की ।
काम   उसके   मेरी   दुआ  आई ।।

ये मुसीबत  भी  क्या  बुरी  शय है ।
जब भी आई  ख़फ़ा  खफा आई ।।

रूठ जाने की जिद के क्या कहने ।
मुद्दतो   बाद    फिर   रज़ा  आई ।।

खूब   चर्चा   है   शहर   में   देखो ।
क्यूँ  रकीबों  से  दिल  लगा आई ।।

उस की किस्मत बुलन्द  थी  यारों ।
उसकी महफ़िल में दिलरुबा आई ।।

लोग    हैरान    हो    गए  तब  से ।
आग  पानी  में  जब  लगा  आई ।।

थी  अदा   इंतकाम   के  काबिल ।
हौसला   फिर  कहीं  डुबा  आई ।।

       --नवीन मणि त्रिपाठी

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