तीखी कलम से

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222

 वफ़ा की सब  फिजाओं में हमारा जिक्र आएगा ।
घिरी  काली  घटाओं  में हमारा  जिक्र  आएगा ।।

पुराने  खत  जला  देना  बहुत  मायूस  कर देंगे ।
खतों  की  वेदनाओं  में  हमारा  जिक्र  आएगा ।।

खुदा से पूछ लेना तुम  खुदा  तस्लीम कर लेगा ।
खुदा की उन दुआओं  में हमारा  जिक्र आएगा ।।

बहारें जब भी आएँगी तेरी  दहलीज़ पे अक्सर ।
महकती सी हवाओं  में  हमारा  जिक्र आएगा ।।

कोई तारीफ़  में तेरे  अगर  कुछ शेर कह जाये ।
तो उसकी भी अदाओं में हमारा जिक्र आएगा ।।

        --नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें