तीखी कलम से

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222

करप्शन  पर  अपोजीशन  से  होती रोज गलती   है ।
सड़क  पर  आ, वतन के  साथ नाइन्साफ करती है ।।

है  गर   कुर्बान  होने  का  नहीं  कुछ  हौसला तुझमें । 
तो अच्छे दिन की ख्वाहिश भी तुझे नापाक करती है।।

बड़ी   गहरी   हुई   है  चोट   इन  हाथी  नसीनों  पर ।
लगी चेहरों पे जो स्याही बड़ी मुश्किल से धुलती  है ।।

है  पैरोकार  काले धन  के जो  चैनल   बहुत  ज्यादा ।
छलकता   दर्द   आँखों  में   नहीं  तश्वीर  दिखती  है ।।

ख़जाने   का  असर  देखो  हुए  बेचैन   कुछ  हाकिम ।
कोई  हँसता  हुआ मिलता किसी  की नींद उड़ती है ।।

रुका जब रथका वो पहिया लगाकुछ अपशकुन होगा।
यहाँ  तो  सायकल  भी  अब  नई  सूरत बदलती  है ।।

बड़ा  अम्बार  नोटों  का  फंसा  बैठी  हैं मोहतरमा ।
नहीं  नोटों  की माला है नहीं  अब शाम  ढलती है ।।

हवाला   की   तिजोरी  में  लगाता  रोज   जो  झाडू ।
बहुत    बीमार  दिखता  है  नई  खांसी पकड़ती  है ।।

लगा   कर  सेंध चिट फंडों  में दौलत मन्द है  काफी ।
वो  अक्सर  होश खो देती जुबाँ उसकी फिसलती है ।।

बड़ा   सुन्दर   नज़ारा  है  अजब  है खौफ  का  मंजर ।
दिखाने जश्न का मौसम बहुत पब्लिक  निकलती है ।।

                                   --    नवीन मणि त्रिपाठी

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