तीखी कलम से

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

मौत का जारी कोई फरमान कर

2122   2122  212

 मौत  का   जारी  कोई  फरमान   कर ।
हो   सके  तो  ऐ  ख़ुदा  एहसान   कर ।।

जिंदगी  तो  काट दी मुश्किल  में अब।
रास्ता  जन्नत  का  तो  आसान   कर ।।

जी  रहा  है  आदमी  किस्तों  में  अब ।
धड़कनो  की  बन्द  यह  दूकान  कर ।।

टूट   जाती    हैं   उमीदें    सांस   की।
 खत्म तू बाकी  बचा  अरमान  कर ।।

हसरतें   सब   बेवफा  सी   हो  गईं ।
आसुओं  के  दौर से अनजान  कर ।।

हार   जाता   है   यहां    हर  आदमी।
क्या करूँगा मौत  को पहचान कर ।।

है   गरीबी    से  मेरा   रिश्ता   बहुत ।
बेबसी का  मत  मेरी  अपमान  कर ।।

फूट  कर   वो   रात   भर  रोता  रहा ।
क्यूँ  बहुत खामोश है सब  जानकर ।।

जब  अँधेरे  ही  मेरी   किस्मत  में  हैं ।
रौशनी  से  मत  खड़ा  तूफ़ान  कर ।।

         -- नवीन

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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