तीखी कलम से

शनिवार, 3 जून 2017

ग़ज़ल --खुशामद की बलाएँ बेशबब बीमार करती हैं

1222 1222 1222 1222 

वो अक्सर  बेरुखी से  वक्त  का  दीदार करती हैं ।
हवाएं  इस  तरह  से  जिंदगी  दुस्वार  करती  हैं ।।

न  जाने  क्या  मुहब्बत  है हमारी हर  तरक्की से ।
हज़ारों मुश्किलें हम  से ही  आंखें चार करती हैं ।।

बड़ी चर्चा है वो  बदनामियों से अब  नहीं  डरता ।
है  उसकी हरकतें ऐसी  दिलों को  ख्वार करतीं हैं ।।

जिन्हें खुद पर भरोसा ही नही रहता है मस्जिद में ।
उन्हें तो रहमतों  की  ख्वाहिशें लाचार  करती  हैं ।।

न् जाओ तुम कभी मतलब  परस्तों  के इलाके  में ।
खुशामद  की  बलाएँ  बेशबब  बीमार करती हैं ।।

वफ़ा चाहो वफ़ा पढ़ लो जफ़ा चाहो जफ़ा पढ़ लो ।
तुम्हारी  चाहतें  मुझको  खुला अखबार  करती हैं ।।

सँभल के चल मेरे साथी निगाहें हैं बड़ी जालिम ।
सुना  है  वारदातें   वो   सरे   बाज़ार   करतीं  हैं ।

उन्हें कैसी अदावत है समझना भी हुआ मुश्किल।
दुआएं   पास  आने  से  मेरे  इनकार  करतीं  हैं ।।

न पूछो हाल अब उसका बहुत चर्चा है जोरों पर ।
अदाएं गैर की महफ़िल गुले गुलज़ार करती हैं ।।

              नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित
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