तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल - अब वो हिंदुस्तान नहीं है

22 22 22 22 

जिंदा  क्या  अरमान  नहीं  है ।
तुझमें  शायद  जान  नहीं  है ।।

कतरा  कतरा अम्न  जला  है । 
अब  वो   हिंदुस्तान  नहीं  है ।।

चन्द   फरेबी   के   वादों   से ।
ये  जनता अनजान  नहीं  है ।।

कौन     सुनेगा    तेरी    बातें ।
सच की जब पहचान  नहीं है।।

निकलो जरा भरम से तुम भी ।
टैक्स   कोई  आसान  नहीं  है।।

रोज    कमाई    गाढ़ी   लुटती ।
मत  समझो अनुमान  नहीं  है ।। 

पढलिख कर वो बना  निठल्ला।
क्या    तुमको  संज्ञान  नहीं  है।।

कुर्सी    पाकर   ऐंठ   रहे   हो ।
कहते  हो  अभिमान  नहीं  है ।।

जख्म सभी जिंदा हैं अब तक ।
दिल   मेरा   नादान   नहीं  है ।।

जात पात की  लीक से हटना ।
अंदर  से  फरमान   नहीं   है ।।

समझ  रहे   हैं  हम भी साहब ।
पक्की  अभी जुबान  नहीं  है ।।

          --नवीन मणि त्रिपाठी

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