तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल -उसकी सूरत नई नई शायद

2122 1212 22 
उसकी   सूरत  नई  नई  देखो।
तिश्नगी  फिर जगा  गई  देखो।।

उड़ रही हैं  सियाह  जुल्फें अब ।
कोई ताज़ा  हवा  चली  देखो ।।

बिजलियाँ  वो  गिरा  के  मानेंगे ।
आज नज़रें झुकी झुकी  देखो ।।

खींच  लाई है आपको  दर तक ।
आपकी  आज  बेखुदी   देखो ।।

रात   गुजरी   है  आपकी  कैसी ।
सिलवटों   से   बयां  हुई  देखो ।।

डूब   जाएं   न   वो  समंदर   में ।
देखिये फिर  लहर  उठी  देखो ।।

हट  गया  जब नकाब  चेहरे  से ।
कोई  बस्ती यहां  जली   देखो ।।

वो तसव्वुर में लिख रहा  ग़ज़लें ।
याद आती  है आशिकी  देखो ।।

खत को पढ़कर जला दिया उसने ।
चोट दिल पर कहीं  लगी   देखो।।

उसके दिल में धुंआ अभी तक है ।
आग अब तक नहीं बुझी  देखो ।।
      
          नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें