तीखी कलम से

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

आज मौसम बड़ा आशिकाना रहा

212 212 212 212 

मुद्दतों    बाद    फिर    मुस्कुराना    रहा ।
आज   मौसम  बड़ा   आशिकाना  रहा ।।

आप  आये  यहां   ये  थी  किस्मत  मेरी ।
इक   मुलाकत   से  दिन   सुहाना  रहा ।।

मुफ़लिसी  में  सभी  छोड़कर  चल  दिये ।
इस    तरह   से   मेरा   दोस्ताना    रहा ।।

वो  मुकर   ही  गए  आज  पहचान   से ।
जिनके  घर  तक मेरा आना जाना रहा ।।

आपकी  इक  अदा  कर  गई  है  असर ।
आपका  तो  गज़ब  का  निशाना  रहा ।।

जाम  उसने   कहा   हुस्न  को  देखकर ।
इश्क़  में  तजरिबा  कुछ  सयाना  रहा ।।

कह  दिया  है  खुदा  उसने  महबूब  को ।
उसका  अंदाज    तो   सूफियाना  रहा ।।

क्या  करेंगे   मेरा  हाल  अब   पूछकर ।
कोई   रिश्ता   कहाँ   अब पुराना रहा ।।

अजनबी बनके गुजरें हैं वो आज फिर ।
याद   उनको  कहाँ  वो  ज़माना   रहा ।।

मान  लूँ  कैसे  उनको  खबर  ही नहीं ।
बेसबब  क्या  नजर का  झुकाना रहा ।।

दौलते  हुस्न  सब  को   मयस्सर  कहाँ ।
आपके  पास   ही  यह  खज़ाना    रहा ।।

तोड़  कर  दिल  मेरा  वो  चले  जा  रहे ।
कल तलक जिनका दिल में ठिकाना रहा ।।

       --नवीन मणि त्रिपाठी 
       मौलिक अप्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें