तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

फिर तबाही आंसुओं की देखना

2122 2122 212
छेड़ कर  उसकी कहानी देखना ।
फिर तबाही आंसुओं की देखना ।।

यूँ ग़ज़ल लिक्खी बहुत उनके लिए ।
लिख रहा हूँ अब रुबाई देखना ।।

अब नुमाइश बन्द कर दो हुस्न की ।
हैं कई  शातिर  शिकारी  देखना ।।

हिज्र ने  हंसकर कहा मुझसे यही ।
वस्ल  की  तुम  बेकरारी  देखना ।।

वह बहक जाएगा इतना मान लो ।
एक दिन  फिर  जग हँसाई देखना ।।

तिश्नगी झुक कर बुझा देती है वो ।
बा  अदब  होती  सुराही   देखना ।।

मांगता हूँ इश्क़ की पहली नज़र ।
तुम भी अपनी  मिह्रबानी  देखना ।।

छोड़ आया दिल तुम्हारी बज़्म में ।
याद  आऊं  तो  निशानी  देखना ।।

हुस्न पर ठहरी अना कहने लगी ।
अब  मेरी  जर्रा नवाज़ी   देखना ।।

इक इशारा प्यार का तो हो कभी ।
बाद में फिर इश्क़ बाज़ी  देखना ।।

मत करो उम्मीद कुछ तारीफ़ की ।
चाल उसकी अब  सियासी  देखना ।।

       नवीन मणि त्रिपाठी

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