तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

मौत तो एक दिन ही आनी है

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तेरी  खुशबू   तो   जाफ़रानी   है ।
सांस थम थम के आनी जानी है ।।

होश  में  ही  नहीं  कदम  उनके ।
बेख़ुदी   में   ढली   जवानी   है ।।

आज  साकी  तो  मिह्रबां  होगा ।
तिश्नगी   आपकी   पुरानी    है ।।

भूल  पाएंगे आप   कब   मुझको ।
आपके   पास  कुछ  निशानी  है ।।

कुछ असर हो गया मुहब्बत  का ।
उसका लहज़ा तो पानी  पानी है ।।

जब से देखी  है हुस्न की फितरत ।
इश्क  में   आ   गयी  रवानी  है ।।

पाँव  उनके  जमीं   से  गायब   हैं ।
आजकल    बात   आसमानी  है ।।

ढक  रहे  लोग  भूख की  इज़्ज़त ।
आज  घर घर  की ये  कहानी  है ।।

खूब    खुदगर्ज    है   ज़माना   ये ।
बेरुखी  उम्र   भर    निभानी   है ।।

मत जिओ इस तरह से घुट घुट कर।
मौत तो  एक  दिन  ही  आनी  है  ।।

        --नवीन मणि त्रिपाठी

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