तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

ग़ज़ल

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निगाहों  से   हुई   कोई   ख़ता   है ।

जो दिल तुझसे वो तेरा  मांगता है ।।


रवानी  जिस  मे  होती   है  समंदर ।

उसी  दरिया  से रिश्ता जोड़ता  है ।।


हमारी  ज़िन्दगी  को  रफ्ता  रफ्ता ।

कोई  सांचे   में  अपने  ढालता  है ।।


तुम्हारे   हुस्न   के   दीदार  ख़ातिर ।

यहाँ  शब  भर  ज़माना  जागता  है ।।


कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।

तुम्हे अब  कौन इतना  चाहता  है ।।


ठहर  जाती  हैं नज़रें  बस वहीँ पर ।

दरीचे  से  वो  जब  भी  झांकता है ।।


बरसने की जवां  होती  है  ख्वाहिश ।

ये बादल जब  ज़मीं  को  देखता है ।


नहीं  सँभलेगा  उससे   दिल  हमारा ।

जो  डोरे  रोज़  हम पर  डालता  है ।।


यकीनन  वाम  पे  उतरेगा  चंदा ।

वो  हाले  दिल  हमारा  जानता  है ।।


न  जाने  कैसी  है  ये   कहकशां भी।

सितारा   हो  के  रुस्वा  टूटता   है ।।


मुक़द्दर  जब   बुरा   होता   है  यारो ।

कोई   अपना  कहाँ   पहचानता  है ।।


          --नवीन मणि त्रिपाठी

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