तीखी कलम से

रविवार, 4 नवंबर 2018

याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई

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शायरी  फख्र  से  महफ़िल   में    सुनानी  आई ।
आप   आये  तो  ग़ज़ल  में  भी   रवानी  आई ।।

लौट  आयीं    हैं  तुझे    छू   के  हमारी   नजरें ।
जब    दरीचे     पे    तेरे   धूप    सुहानी   आई ।।

पूछ    लेता    है   वो   हर   दर्द   पुराना   मुझसे ।
अब  तलक  मुझको   कहाँ  बात  छुपानी  आई ।।

तीर  नजरों  से  चला  कर  के  यहां  छुप  जाना ।
नींद    मेरी    भी   तुझे    खूब    चुरानी   आई ।।

मुद्दतों  बाद  जो  गुजरा  था  गली  से   इकदिन ।
याद  मुझको   तेरी   हर   एक   निशानी   आई ।।

दर्द   पूछा  जो  किसी  ने  तो  जुबां  पर उसकी ।
बारहा   ज़ुल्म   की   तेरी   वो    कहानी   आई ।।

रह गया अब कहाँ शिकवा गिला तुझसे साकी ।
मेरे   हिस्से  में   जो   बोतल  थी  पुरानी  आई ।।

रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म   से   लुट  के  हर इक बार  सयानी आई ।।

हो  गए  खूब  फ़ना  ज़ुल्फ़ पर  लाखों आशिक ।
जब  भी  चेहरों   पे   कहीं  सुर्ख  जवानी  आई ।।

           नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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