2122 1122 1122 22
शायरी फख्र से महफ़िल में सुनानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।
लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।
पूछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।
तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।
मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।
दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।
रह गया अब कहाँ शिकवा गिला तुझसे साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।
रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के हर इक बार सयानी आई ।।
हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
शायरी फख्र से महफ़िल में सुनानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।
लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।
पूछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।
तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।
मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।
दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।
रह गया अब कहाँ शिकवा गिला तुझसे साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।
रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के हर इक बार सयानी आई ।।
हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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