2122 1212 112/22
फख्र से फिर छला गया है मुझे ।
ज़ह्र बेशक दिया गया है मुझे ।।
वो सियासत में दांव चलचल कर ।
मकतलों तक बुला गया है मुझे ।।
फिर मिटाने की साजिशें लेकर ।
वो गले से लगा गया है मुझे ।।
खूब करता है रोज तकरीरें ।
रफ़्ता रफ़्ता जो खा गया है मुझे ।।
जिंदगी एक तिश्नगी भर है ।
वो हकीकत जता गया है मुझे ।।
छेड़ना हक़ की बात मत यारो ।
फैसला वह सुना गया है मुझे ।।
फ़िक्र का जिक्र करके ज़ालिम तो।
बेख़ुदी में जला गया है मुझे ।।
हूँ मैं खामोश ज़ुल्म पर कितना ।
सब्र करना तो आ गया है मुझे ।।
अब न कीजै यकीन जुमलों पर ।
वक्त इतना सिखा गया है मुझे ।।
तुम तरक्की पे मत करो चर्चा ।
कायदा वो पढ़ा गया है मुझे ।।
तख़्त देते हैं मन्दिरो मस्जिद ।
राज कोई बता गया है मुझे ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
फख्र से फिर छला गया है मुझे ।
ज़ह्र बेशक दिया गया है मुझे ।।
वो सियासत में दांव चलचल कर ।
मकतलों तक बुला गया है मुझे ।।
फिर मिटाने की साजिशें लेकर ।
वो गले से लगा गया है मुझे ।।
खूब करता है रोज तकरीरें ।
रफ़्ता रफ़्ता जो खा गया है मुझे ।।
जिंदगी एक तिश्नगी भर है ।
वो हकीकत जता गया है मुझे ।।
छेड़ना हक़ की बात मत यारो ।
फैसला वह सुना गया है मुझे ।।
फ़िक्र का जिक्र करके ज़ालिम तो।
बेख़ुदी में जला गया है मुझे ।।
हूँ मैं खामोश ज़ुल्म पर कितना ।
सब्र करना तो आ गया है मुझे ।।
अब न कीजै यकीन जुमलों पर ।
वक्त इतना सिखा गया है मुझे ।।
तुम तरक्की पे मत करो चर्चा ।
कायदा वो पढ़ा गया है मुझे ।।
तख़्त देते हैं मन्दिरो मस्जिद ।
राज कोई बता गया है मुझे ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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