212 212 212 212
जिंदगी रफ़्ता रफ़्ता पिघलती रही ।
आशिकी उम्र भर सिर्फ छलती रही ।।
देखते देखते हो गयी फिर सहर ।
बात ही बात में रात ढलती रही ।।
सुर्ख लब पर तबस्सुम तो आया मगर ।
कोई ख्वाहिश जुबाँ पर मचलती रही ।।
इक तरफ खाइयाँ इक तरफ थे कुएं ।
वो जवानी अदा से सँभलती रही ।।
जाम जब आँख से उसने छलका दिया ।
मैकशी बे अदब रात चलती रही ।।
देखकर अपनी महफ़िल में महबूब को।
पैरहन बेसबब वह बदलती रही ।।
यूँ ही ठुकरा गया हुस्न जब इश्क़ को ।
तिश्नगी उम्र भर हाथ मलती रही ।।
उस परिंदे की फितरत है उड़ना बहुत ।
बे वज्ह आपको बात खलती रही ।।
बच गए हम तो क़ातिल नज़र से सनम ।
मौत आंगन में आकर टहलती रही ।।
रेत मानिंद सहरा में वो हाथ की ।
मुट्ठियों से हमारी फिसलती रही ।।
दिल जलाने की साजिश लिए साथ में ।
वो हमारी गली से निकलती रही ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
- मौलिक अप्रकाशित
जिंदगी रफ़्ता रफ़्ता पिघलती रही ।
आशिकी उम्र भर सिर्फ छलती रही ।।
देखते देखते हो गयी फिर सहर ।
बात ही बात में रात ढलती रही ।।
सुर्ख लब पर तबस्सुम तो आया मगर ।
कोई ख्वाहिश जुबाँ पर मचलती रही ।।
इक तरफ खाइयाँ इक तरफ थे कुएं ।
वो जवानी अदा से सँभलती रही ।।
जाम जब आँख से उसने छलका दिया ।
मैकशी बे अदब रात चलती रही ।।
देखकर अपनी महफ़िल में महबूब को।
पैरहन बेसबब वह बदलती रही ।।
यूँ ही ठुकरा गया हुस्न जब इश्क़ को ।
तिश्नगी उम्र भर हाथ मलती रही ।।
उस परिंदे की फितरत है उड़ना बहुत ।
बे वज्ह आपको बात खलती रही ।।
बच गए हम तो क़ातिल नज़र से सनम ।
मौत आंगन में आकर टहलती रही ।।
रेत मानिंद सहरा में वो हाथ की ।
मुट्ठियों से हमारी फिसलती रही ।।
दिल जलाने की साजिश लिए साथ में ।
वो हमारी गली से निकलती रही ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
- मौलिक अप्रकाशित
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