अभी तो यहाँ कुछ हुआ ही नहीं है ।
वो नादां उसे तज्रिबा ही नही है ।।
उसे ही मिलेगी सजा हिज्र की अब ।
मुहब्बत में जिसकी ख़ता ही नहीं है ।।
अगर आ गए हैं तो कुछ देर रुकिए ।
अभी तो मेरा दिल भरा ही नहीं है ।।
है बेचैन कितना वो आशिक तुम्हारा ।
कहा किसने जादू चला ही नहीं है ।।
जिधर जा रही वो उधर जा रहे हम ।
हमें जिंदगी से गिला ही नहीं है ।।
मिलेगा कहाँ से हमें कोई धोका ।
हमें आप का आसरा ही नहीं है ।।
बताने लगा है ये नफरत का लहज़ा ।
मेरा खत वो अबतक पढ़ा ही नहीं है ।।
भरोसा न कीजै यहाँ पर किसी का ।
सियासत में कोई सगा ही नहीं है ।।
यहाँ हाले दिल पूछते हैं वो जैसे ।
कि उनको मेरा गम पता ही नहीं है ।।
करूँ अर्ज कैसे ज़माना है क़ातिल ।
चमन में कहीं देवता ही नहीं है ।।
लगी आग बेशक जली दिल की बस्ती ।
धुंआ देखिये कुछ उठा ही नहीं है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
वो नादां उसे तज्रिबा ही नही है ।।
उसे ही मिलेगी सजा हिज्र की अब ।
मुहब्बत में जिसकी ख़ता ही नहीं है ।।
अगर आ गए हैं तो कुछ देर रुकिए ।
अभी तो मेरा दिल भरा ही नहीं है ।।
है बेचैन कितना वो आशिक तुम्हारा ।
कहा किसने जादू चला ही नहीं है ।।
जिधर जा रही वो उधर जा रहे हम ।
हमें जिंदगी से गिला ही नहीं है ।।
मिलेगा कहाँ से हमें कोई धोका ।
हमें आप का आसरा ही नहीं है ।।
बताने लगा है ये नफरत का लहज़ा ।
मेरा खत वो अबतक पढ़ा ही नहीं है ।।
भरोसा न कीजै यहाँ पर किसी का ।
सियासत में कोई सगा ही नहीं है ।।
यहाँ हाले दिल पूछते हैं वो जैसे ।
कि उनको मेरा गम पता ही नहीं है ।।
करूँ अर्ज कैसे ज़माना है क़ातिल ।
चमन में कहीं देवता ही नहीं है ।।
लगी आग बेशक जली दिल की बस्ती ।
धुंआ देखिये कुछ उठा ही नहीं है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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