वो अपनी बदगुमानी पर हुई मगरूर ज्यादा है ।
अजब दस्तूर है या रब वही मशहूर ज्यादा है ।।
वो नज़रें फेर लेती है गली से जब कभी निकला ।
मुहब्बत का नशा होने लगा काफूर ज्यादा है ।।
मचलता है कोई भौरा कली की बेशुमारी पर ।
नज़र करती वहीँ सजदा जहाँ पर नूर ज्यादा है ।।
तुम्हारे हुश्न की चर्चा शहर की हर गली में है ।
जमाने ने कहा तुझको चश्मेबद्दूर ज्यादा है।।
मरीज ए इश्क हूँ जिन्दा रहूँगा ये खुदा जाने ।
हकीमों ने बयानों में कहा नासूर ज्यादा है ।।
तेरे खत में हिदायत थी कभी न बात करने की ।
रहम करना ख़ता पर दिल हुआ मजबूर ज्यादा है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठ