तीखी कलम से

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

मचलता है वहीँ भौरा

वो अपनी बदगुमानी पर  हुई मगरूर  ज्यादा  है ।
अजब  दस्तूर है या रब  वही  मशहूर  ज्यादा है ।।

वो नज़रें फेर लेती है गली से जब कभी निकला ।
मुहब्बत  का  नशा  होने लगा  काफूर ज्यादा है ।।

मचलता  है कोई  भौरा  कली  की  बेशुमारी  पर ।
नज़र करती  वहीँ सजदा  जहाँ पर नूर ज्यादा है ।।

तुम्हारे  हुश्न  की  चर्चा  शहर  की हर  गली  में है ।
जमाने  ने  कहा   तुझको  चश्मेबद्दूर   ज्यादा   है।।

मरीज  ए  इश्क  हूँ  जिन्दा  रहूँगा  ये  खुदा  जाने ।
हकीमों   ने   बयानों   में   कहा  नासूर  ज्यादा  है ।।

तेरे  खत  में  हिदायत  थी कभी न  बात करने की ।
रहम करना  ख़ता पर दिल हुआ मजबूर ज्यादा है ।।

                      --नवीन मणि त्रिपाठ

इश्क में क्यूँ जुबाँ बेअदब हो गयी

यह कहानी भी तेरी  गजब  हो  गयी ।
इश्क में क्यूँ जुबां  बे अदब  हो गयी ।।

एक  माशूक  जलता  रहा  रात  दिन ।
गैर दर  पे  मुहब्बत  तलब  हो गयी ।।

दस्तकों  से  मेरा  ताल्लुक  था  बहुत ।
ख्वाहिशें   बेवजह  बेसबब  हो  गयीं ।।

चाँद   अंगड़ाइयां   ले   गुजरता  रहा ।
वक्त ही  न  रहा  खत्म  शब् हो गयी।।

सुर्ख  लब पे  पढे  चन्द  अशआर  थे ।
वह ग़ज़ल भी जवां जाने कब हो गयी।।

सख्त  पहरा था  दरबान  का हुश्न  पर ।
दिल की दीवार में क्यूँ नकब  हो गयी ।।

                    --नवीन मणि त्रिपाठी

मेरे आसुओं से ख़ता पूछते हैं

वो  मंजिल  पर आकर  पता  पूछते हैं ।
मेरे  अहले   दिल  की  रजा  पूछते हैं ।।

नसीहत  जफ़ाओं  की  जो  दे  गए  थे ।
सरे   बज्म    हमसे   वफ़ा   पूछते   हैं ।।

लिखी  जिसने  दर्दे  सितम की इबारत ।
मेरे   आसुओं   से    ख़ता   पूछते   हैं ।।

किया  जब भी  तारीफ  मैंने किसी की ।
मुहब्बत   का   हर   वास्ता  पूछते   हैं ।।

हुई जब से हासिल उन्हें  मिलकियत है।
जमाने   से  कीमत  अता   पूछते   हैं ।।

खुदा  जाने क्या  फैसला  देंगे  हाकिम ।
गुनाहों   की   हमसे   दफ़ा  पूछते  हैं ।।

जलाने  की  हसरत लिए मेरे कातिल ।
हरे   जख़्म   की   दास्ता   पूछते   है ।।

खिंजा में  है पत्तो  ने क्यूँ  साथ  छोड़ा ।
ये  हाल  ए  शजर  फ़ाख़्ता  पूछते  हैं ।।

बड़ी शोख नजरे अजब की हिमाकत ।
हैं  दिल  में   मगर  रास्ता   पूछते  हैं ।।

       नवीन मणि त्रिपाठी 


सोमवार, 11 अप्रैल 2016

प्रियतम यह मधुमास तुम्हारा --गीत

गीत

आशाओ  को  छल  कर  जाता ।
प्रियतम  यह  मधुमास  तुम्हारा ।।
सहज  नयन तो  कह  जाते  हैं ।
प्रणय   बन्ध  विश्वास  हमारा ।।

अगम  अगोचर सूत्र  निरूपित ।
किन्तु नेह  क्यों है  अभिशापित।।
यौवन  श्रृंगारों   से    पुलकित।
सकल  वासना तुझ पर अर्पित ।।

नित  नीरवता  हस  कर  कहती
बहुत  हुआ  उपहास  तुम्हारा ।।
आशाओं  को  छल  कर  जाता।
प्रियतम  यह मधुमास तुम्हारा ।।

तृप्ति   बूँद   स्वाती   अमृत   है ।
भ्रमर   हो   गया   सम्मोहित  है।
हुई  कुमुदिनी  क्या  मुखरित  है।
प्रश्न्   हुआ  फिर  अनुत्तरित  है।

मेघ     सदा   मनुहार   दिखाता ।
जब  जब  मैं  आकाश निहारा ।।
आशाओ  को  छल  कर  जाता ।
प्रियतम  यह  मधुमास तुम्हारा ।।

कुञ्ज   कुञ्ज  की  रीत  पुरानी ।
अनुनादित   यह   प्रीति  सुहानी ।।
उद्वेलित   श्वासों    की    बानी ।
पावन    मधुरिम  प्रेम   कहानी ।।

जीवन  कण्टक  पथ  पर जीता ।
प्रलय   तुल्य   आभास हमारा ।।
आशाओं को  छल  कर  जाता ।
प्रियतम यह  मधुमास तुम्हारा ।।

नव    चेतन    के   अंतर्मन    में ।
कुछ  द्वन्द   हुए   अवचेतन  में ।।
धरती  अम्बर  के कण  कण  में।
है  मोक्ष   गन्ध  प्रिय  रंजन  में ।।

यह  वर्तमान   ठग   कर   जाता ।
जग  ने बस  परिहास  निखारा ।।
आशाओं  को  छल   कर जाता ।
प्रियतम  यह  मधुमास  तुम्हारा ।।

     नवीन मणि त्रिपाठी

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

कल तलक थी जो बेवफा काफ़ी

वह मुकद्दर  से  मिट   गया  काफी।
जिसके हिस्से में थी  दुआ  काफी ।।

जुबाँ से  जब भी लफ़्ज है फिसले ।
हुआ   शहर    में   तर्जुमा  काफी ।।

बहुत   बेफिक्र   सितमगर  से  हूँ ।
मेरी  खातिर   मेरा   खुदा काफी ।।

बाद  मुद्दत  के  कब्र  पर  आया ।
आ   रही  है  तेरी   सदा  काफी ।।

गिरफ़्त में  है  इश्क़  की  मुजरिम ।
गाँव  में  फिर  उड़ी  हवा  काफी ।।

फिर मुहब्बत की  बात छेड़  गयी।
कल तलक थी जो बेवफा काफी ।।

अब  उसे  रोकना हुआ  मुश्किल ।
है  अदाओं  पे वो  फ़िदा  काफी ।।

मुस्कुरा  कर  गले  मिला  लेकिन ।
बात   पहले  से  है  जुदा  काफी ।।

नूर   चेहरे  का  कह  गया  उसके ।
रात  भर  वह  रही  ख़फ़ा काफी ।।

है   बरक्कत  में   जुर्म  का  धंधा ।
तू है कातिल तेरी  फ़िज़ा  काफी ।।

           --नवीन मणि त्रिपाठी